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एससी-एसटी एक्ट तभी लागू जब अपमान की मंशा हो : सुप्रीम कोर्ट

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सुप्रीम कोर्ट नेशुक्रवार को कहा कि एससी-एसटी एक्ट के तहत अपराध केवल इस आधार पर स्थापित नहीं होता कि शिकायतकर्ता अनुसूचित जाति (एससी) या अनुसूचित जनजाति (एसटी) समुदाय का सदस्य है, जब तक कि उसे अपमानित करने का इरादा न हो

जस्टिस जेबी पार्डीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने यह टिप्पणी यू-ट्यूबर शाजन स्कारिया को अग्रिम जमानत प्रदान करते हुए की जो ‘मरुनंदन मलयाली’ नामक चैनल संचालित करते हैं। स्कारिया ने केरल हाई कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें उसने विधायक पीवी श्रीनिजिन द्वारा दर्ज कराए गए आपराधिक मामले में अग्रिम जमानत देने से इन्कार कर दिया था। श्रीनिजिन ने स्कारिया के विरुद्ध एससी-एसटी (अत्याचारों की रोकथाम) अधिनियम, 1989 के तहत एफआइआर दर्ज कराई थी।

इसमें उन्होंने आरोप लगाया था कि स्कारिया ने अपने चैनल पर अपलोड वीडियो के जरिये उन पर झूठे आरोप लगाकर जानबूझकर अपमानित किया। सिर्फ इस तथ्य के आधार पर एससी-एसटी एक्ट की धारा- 3 (1) (आर) लागू नहीं होती कि अपमानित होने या धमकी पाने वाले व्यक्ति एससी या एसटी से ताल्लुक रखता है, जब तक कि आरोपित व्यक्ति का इरादा संबंधित व्यक्ति को जाति के आधार पर अपमानित करने का न हो या संबंधित व्यक्ति के एससी-एसटी समुदाय से ताल्लुक रखने के कारण अपमानित करने का न हो।

दूसरे शब्दों में, 1989 के इस अधिनियम का तात्पर्य यह नहीं है कि गैर एससी-एसटी समुदाय के किसी व्यक्ति द्वारा एससी या एसटी से संबंधित किसी व्यक्ति का जानबूझकर किया गया अपमान या धमकी का प्रत्येक कार्य इस अधिनियम की धारा 3 (1) (आर) के अंतर्गत आएगा, वह भी सिर्फ इसलिए कि यह उसके विरुद्ध किया गया है जो एससी या एसटी का है।

ऐसा क्यों कर रहा है सुप्रीम कोर्ट और सरकार मिलकर

ऐसा इसलिए किया जा रहा है ताकि दलित और आदिवासियों को कमजोर किया जा या इनका आरक्षण खत्म किया जा सके अभी कुछ दिन पहले आपने देखा था एससी एसटी आरक्षण वर्गीकरण को लेकर बड़ा फैसला लिया था उसके विरोध में भारत बंद किया गया 21 अगस्त को अब फिर उसके विरोध में 11 सितंबर को दिल्ली जा रहे हैं SC ST वाले लोग

जब तक सुप्रीम कोर्ट में कॉलेजियम व्यवस्था रहेगी तब तक यही हाल होगा

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